भगवद् गीता एक धार्मिक पुस्तक नहीं है। यदि मानव प्रकृति में जीवन रूपों में से एक के रूप में सर्वशक्तिमान ईश्वर की रचना है, तो भगवान गीता मनुष्यों के लिए अपने जीवन के माध्यम से खुद को संचालित करने के लिए मैनुअल है, जिसे कृष्ण ने अर्जुन द्वारा सवालों के जवाब के रूप में कहा है। भगवद् गीता से उद्धृत, श्री भूपेंद्र तायल, IIT खड़गपुर के पूर्व छात्र, श्री वीरेंद्र जेटली के सवालों का जवाब देते हैं, आधुनिक, कॉर्पोरेट, व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर, IIT के कई अन्य अन्य लोगों द्वारा उठाए गए सवालों को भी स्पष्ट करते हैं जिन्होंने ‘भगवद् गीता का व्यवसाय प्रबंधन में प्रासंगिकता’ से जुड़े इस Q और A सत्र में भाग लिया।
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भगवद् गीता एक धार्मिक पुस्तक नहीं है। यदि मानव प्रकृति में जीवन रूपों में से एक के रूप में सर्वशक्तिमान ईश्वर की रचना है, तो भगवान गीता मनुष्यों के लिए अपने जीवन के माध्यम से खुद को संचालित करने के लिए मैनुअल है, जिसे कृष्ण ने अर्जुन द्वारा सवालों के जवाब के रूप में कहा है। भगवद् गीता से उद्धृत, श्री भूपेंद्र तायल, IIT खड़गपुर के पूर्व छात्र, श्री वीरेंद्र जेटली के सवालों का जवाब देते हैं, आधुनिक, कॉर्पोरेट, व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर, IIT के कई अन्य अन्य लोगों द्वारा उठाए गए सवालों को भी स्पष्ट करते हैं जिन्होंने ‘भगवद् गीता का व्यवसाय प्रबंधन में प्रासंगिकता’ से जुड़े इस Q और A सत्र में भाग लिया।
संकीर्तन वह होता है, जिसमें राग-रागिनियों के साथ उच्च स्वर से नामका गान किया जाय। भगवान् के नामके सिवाय उनकी लीला, गुण, प्रभाव आदि का भी कीर्तन होता है, परन्तु इन सबमें नाम-संकीर्तन बहुत सुगम और श्रेष्ठ है।
नाम-संकीर्तन में ताल-स्वर सहित राग-रागिनियों के साथ जितना ही तल्लीन होकर ऊँचे स्वर में नामका गान किया जाय, उतना ही वह अधिक श्रेष्ठ होता है।
भगवान् ने मनुष्य को ऐसी योग्यता दी है, जिससे वह तत्त्वज्ञान को प्राप्त करके मुक्त हो सकता है; भक्त हो सकता है; संसार की सेवा भी कर सकता है और भगवान् की सेवा भी कर सकता है। यह संसार की आवष्यकता की पूर्ति भी कर सके और भगवान् की भूख भी मिटा सके, भगवान् को भी निहाल कर सके-ऐसी सामर्थ्य भगवान् ने मनुष्य को दी है! और किसी को भी ऐसी योग्यता नहीं दी, देवताओं को भी नहीं दी।
भगवान् को भूख किस बात की है?
भगवान् को प्रेम की भूख है।
संसार के संबंध से दुःख-ही-दुःख होता है और परमात्मा के संबंध से आनन्द-ही-आनन्द। इन बातों को हम संत-महापुरूषों से सुनते हैं और स्वयं मानते हैं, फिर भी हमारा दुःख दूर क्यों नहीं हो रहा है? हमें भगवान् क्यों नहीं मिल रहे हैं?
एक बड़ा सवाल जो सबके मन में आता होगा लोग मूर्ति पूजा क्यों करते हैं? हमारे सनातन वैदिक सिद्धान्त में भक्तलोग मूर्ति का पूजन नहीं करते, प्रत्युत परमात्मा का ही पूजन करते हैं। तात्पर्य है कि परमात्मा के लिये मूर्ति बनाकर उस मूर्ति में उस परमात्मा का पूजन करते हैं, जिससे सुगमतापूर्वक परमात्मा का ध्यान-चिन्तन होता रहे।
Why do most people not read or understand Bhagavad Gita? There are three main reasons for it.
First, there is very little promotion of Bhagavad Gita in society. Second, people do not..
No one wants death, but it is approaching every moment. We are losing 900 breaths per hour, 21600 breaths every day. We must pay attention to this. Breaths are being spent but what are we earning? What are we happy about?
Moh or attraction/love towards material things is the biggest source of dissatisfaction amongst most of us. In chapter 2 of Bhagavad Gita, Shri Krishna gave Arjuna the key to control your affection towards things and follow the path of virtue. Read this blog to know more about it.
भगवद्गीता व्यवहार क्षेत्र में जीवन जीने की कला सिखाती है। वह बताती है कि हम कैसे अपने जीवन को गीता के आधार पर जीयें। हम जीवन में व्यवहार कैसे करें तथा अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में कैसे कार्य करें कि हम चिंता शोक तनाव भय व अन्य विकारों से निजात पा सकें।
इसके लिए सर्वप्रथम तो हम यह समझें कि हम कौन हैं, हमारा परिचय क्या है?