Bhagavad Gita 2.16: Verse 16
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः ॥2.16॥
भावार्थ - Gist
असत् वस्तु की तो सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनों का ही तत्व तत्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है॥2.16॥
Seers of truth have concluded that of the non eternal (asat-material body) there is no endurance and for the entity of the eternal (sat) there is never non existence.
व्याख्या - Explanation
शरीर जन्म से पहले भी नहीं था, मरने के बाद भी नहीं रहेगा और वर्तमान में भी प्रतिक्षण इसका अभाव हो रहा है, अतः यह असत् है। संसार को हम केवल एक बार ही देख सकते हैं, दूसरी बार (उसी रूप में) नहीं, कारण कि संसार प्रतिक्षण परिवर्तनशील है। अतः वह असत् है। असत् में यदि परिवर्तन आ जाये, तो शोक कैसा? वह तो आयेगा ही। शरीरी कभी बदलता नहीं, अतः उसका भाव सदा रहता है। अब उसको यदि कोई यह कहे कि- ‘वह मर गया’, तो क्या यह सही हो सकता है?
The body was not there before birth, will not exist after death and even while living is every moment dying away. It is therefore both perishable and short lived. This world is but a mirage which changes from moment to moment. Thus if it undergoes change, where is the cause of sorrow? That change or death is inevitable. The spirit neither changes nor dies, therefore it’s entity is eternal. It cannot die, change or be spent.