Bhagavad Gita 2.50

Bhagavad Gita 2.50: Verse 50

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्‌ ॥2.50॥

भावार्थ - Gist

समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंध से छूटने का उपाय है॥2.50॥

The person with intelligence (equanimity) liberates himself, while still living, from good and evil actions alike; therefore strive for this state of equanimity, in which lies the true skill of performing actions.

व्याख्या - Explanation

(1) समता में रहने से पाप-पुण्य दोनों ही नहीं लगते। समता ऐसी विद्या है, जिससे मनुष्य जल में कमल के पत्ते के समान संसार में रहता हुआ भी संसार से सर्वथा निर्लिप्त रहता है।

(2) कर्मों में योग ही कुषलता है और योग का अर्थ समता है। अतः कर्मों में समता बनाये रखना ही कुषलता है। कर्मों में समता कैसे बनाये रखें?-
(क) यह जानकर कि फल में हमारा अधिकार नहीं है (2.47)। इसलिये जो भी फल मिले, उसे भगवान् का प्रसाद मानकर ग्रहण करें।
(ख) कर्म सदैव दूसरों के हित के लिये करें, जिससे उसमें व फल में आसक्ति का त्याग आसान हो।
(ग) कर्म कृष्ण के लिये करें, या उसका फल सदैव उन्हें अर्पण कर दें। इससे समता अवष्य ही आयेगी।

  1. The man who has obtained equanimity gets rid of both good and bad results of his karmas. Equanimity (samata) is a science by which one could remain untouched by virtue and vice while living in this world, just as the lotus flower stands untainted in water.
  2. Yoga is really the skill in performing activities. Yoga and equanimity are one and the same thing. Maintaining equanimity is the true skill in karmas..But how can practice samata?
  • By realizing that we have no control over the fruits of our actions all the fruits are to be accepted as blessing of Krishna and / or
  • Perform Karmas only in the service of others so as to facilitate detachment to those Karmas and their fruits and /or
  •  Perform all actions for the pleasure of Krishna or always offer the results to Him .This would surely lead to equanimity.