Bhagavad Gita 3.38: Verse 38
धूमेनाव्रियते वह्निर्यथाऽऽदर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।।3.38।।
भावार्थ - Gist
जिस प्रकार धुएँ से अग्नि और मैल से दर्पण ढँका जाता है तथा जिस प्रकार जेर से गर्भ ढँका रहता है, वैसे ही उस काम द्वारा यह ज्ञान ढँका रहता है॥3.38॥
The way fire is covered by smoke, mirror by dust and embryo by womb, the true intellect is clouded over by desires.
व्याख्या - Explanation
2. श्रीमद्भागवत् में कामना वाले पुरुषों के कल्याण का उपाय कर्मयोग बताया है (11.20.7) पर अगले ही श्लोक में भगवान् कृष्ण कहते हैं कि यदि उसे मेरी महिमा सुनने में तथा मेरे कीर्तन करने में श्रद्धा उत्पन्न हो जाय, तो उसे मेरी प्रेमाभक्ति के मार्ग से अपना कल्याण ढूँढ़ना चाहिये। अतः कामना वाले पुरुषों को अपने कल्याण के विषय में निराश नहीं होना चाहिये क्योंकि जिसमें कामना आयी है, वही निष्काम होगा।