Bhagavad Gita 8.7: Verse 7
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्।।8.7।।
भावार्थ - Gist
इसलिए हे अर्जुन! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा॥8.7॥
Therefore, think of Me at all times, and also fight the battle. With your mind and intellect surrendered to Me, you will without a doubt attain Me.
व्याख्या - Explanation
1) सब समय में मेरा स्मरण करने के लिये कहने का तात्पर्य है कि यद्यपि समय कार्यों के विभाग से विभक्त है (यह समय सोने का है, यह काम करने का है आदि) परन्तु कृष्ण के स्मरण के लिए समय का विभाग नहीं होना चाहिये। कृष्ण को तो सब समय में ही याद रखना चाहिये।
2) मनुष्य को जो कर्तव्य रूप से प्राप्त हो जाये, उसको कृष्ण का स्मरण करते हुए करना चाहिये। परन्तु उसमें कृष्ण का स्मरण मुख्य होना चाहिये और कर्तव्य कर्म को गौण मानना है।
3) मेरे में मन, बुद्धि अर्पण कर देने का साधारण अर्थ है कि मन से कृष्ण का चिन्तन हो और बुद्धि से उनकी प्राप्ति का निश्चय किया जाये। किन्तु वास्तविक अर्थ है- मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ, शरीर आदि को कृष्ण का ही मानना और भूल से भी इन्हें अपना न मानना। साधक जब तक इन्हें अपना मानेगा, इनमें अशुद्धियां रहेंगी ही और इस मान्यता की वजह से अन्य अनेक प्रकार की अशुद्धियाँ पैदा हो जाती है। इसलिये इन्हें कृष्ण के ही समझकर कृष्ण को ही अर्पण कर देना चाहिये।