Bhagavad Gita 18.4: Verse 4
निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम।
त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः संप्रकीर्तितः।।18.4।।
भावार्थ - Gist
हे पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन ! संन्यास और त्याग, इन दोनों में से पहले त्याग के विषय में तू मेरा निश्चय सुन। क्योंकि त्याग सात्विक, राजस और तामस भेद से तीन प्रकार का कहा गया है ৷৷18.4॥
O Arjun! Great scion of the Bharat Dynasty! Between sanyaas (renunciation) and tyaga (relinquishment of fruits of action), hear from Me first My considered judgement about tyaga.
व्याख्या - Explanation
1) जिस प्रकार शरीर और शरीरी का विवेक सबके लिये परम आवश्यक है, इसलिये कृष्ण ने उसका वर्णन सबसे पहले किया है (2.11 से 2.30 तक), उसी प्रकार कर्मों में आसक्ति और फल की कामना का त्याग सभी के लिये अत्यन्त आवश्यक है, इसलिये कृष्ण ने यहाँ त्याग का वर्णन सबसे पहले किया है।
2) वास्तव में कृष्ण के मत में सात्विक त्याग ही त्याग है, अतः वही ग्राह्य है और राजस तथा तामस त्याग त्याज्य हैं।