Bhagavad Gita 18.68: Verse 68
य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति।
भक्ितं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः।।18.68।।
भावार्थ - Gist
जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा- इसमें कोई संदेह नहीं है ৷৷18.68॥
The one who, with supreme devotion to Me, reveals this ultimate secretmost dialogue (between Arjun and Krishna) to My devotees, shall attain Me and Me alone. Of this there is no doubt.
व्याख्या - Explanation
1) जो मुझमें पराभक्ति करके अर्थात् रुपये, मान, बड़ाई आदि किसी की भी कामना न रखकर प्रत्युत कृष्ण में भक्ति हो जाय, इन भावों का प्रचार हो जाय- इस प्रकार का उद्देश्य रखकर कहना ही पराभक्ति करके कहना है।
2) कृष्ण में श्रद्धा, पूज्यबुद्धि रखने वाला उनका भक्त है। ऐसे मेरे भक्त को जो यह संवाद कहेगा, वह मेरे को प्राप्त होगा। अगर गीता सुनाने वालों का केवल मेरा ही उद्देश्य होगा, तो वह मेरे को प्राप्त हो जायेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।