Bhagavad Gita 2.41: Verse 41
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।2.41।।
भावार्थ - Gist
हे अर्जुन! इस कर्मयोग में निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है, किन्तु अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदों वाली और अनन्त होती हैं॥2.41॥
O Arjuna! Those who are resolute in this purpose have a single integrated intelligence, while those who are not resolute have scattered intelligence.

व्याख्या - Explanation
1. अन्तःकरण की समता में संसार का राग बाधक है। उस राग को हटाने का अथवा भगवान् को प्राप्त करने का जो एक निश्चय है, उसका नाम है- व्यवसायात्मिका बुद्धि। जब तक इस बुद्धि का एक निश्चय नहीं हो जाता, तब तक न तो (कर्मों के द्वारा) संसार से राग मिट सकता है और न ही हम भक्तियोग में खास उन्नति कर सकते हैं।
2. वास्तविक निश्चय (उद्देष्य) एक है। जब तक उद्देष्य एक नहीं होता, तब तक अनन्त उद्देष्य रहते हैं और उनके विषय में कामनाएँ भी अनन्त होती हैं।
2. True objective is only one. Unless there is only one objective to be realized, we would desire to achieve several things.