Bhagavad Gita 2.39: Verse 39
कर्मयोग विषय का उपदेश
एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु ।
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥2.39॥
भावार्थ - Gist
हे पार्थ! यह बुद्धि तेरे लिए ज्ञानयोग के विषय में कही गई और अब तू इसको कर्मयोग के (अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखें।) विषय में सुन- जिस बुद्धि से युक्त हुआ तू कर्मों के बंधन को भली-भाँति त्याग देगा अर्थात सर्वथा नष्ट कर डालेगा॥2.39॥
O son of Pratha! This inward composure and dignity was earlier discussed in Sankhyayoga (analytical study of body and soul) for your enlightment. And now hear me speak of it in the context of Karmayoga. By cultivating within yourself this cool, calm and clear vision, you can liberate yourself from the shackles of birth, death and rebirth according to your actions.
व्याख्या - Explanation
कर्म बन्धन क्या है ?-
1. हम जैसे कर्म करेंगे, वैसा हमें फल मिलेगा। अच्छे कर्म करेंगे, तो अच्छा फल मिलेगा; बुरा करेंगे तो बुरा फल मिलेगा- अभी मिले, या देर से। इस जन्म में, या आगे के जन्म में। और इस फल को प्राप्त करने के लिये यदि यह जन्म पर्याप्त नहीं है, तो आगे जन्म भी लेने पड़ेंगे। अर्थात् कर्म करने से फल पाने का बन्धन आ जाता है और हमें जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमते रहना पड़ता है।
2. बुरे कर्म यदि लोहे की जंजीर हैं तो अच्छे कर्म सोने की जंजीर। पर हैं दोनों जंजीर। जब तक जंजीर में रहेंगे, भय और चिन्ता तो रहेगी ही। फिर क्या उपाय है? यदि कर्म न अच्छे हो, न बुरे, तो न अच्छे फल मिलेंगे, न बुरे। पर ऐसे कर्म हम करें कैसे?
3. अच्छे कर्म वे कर्म हैं, जो हमारे कर्तव्य कर्म हैं और हमने उन्हें पुण्य कमाने के लिये किये हैं, जैसे दान देना- इस बुद्धि से कि जिससे हमें भी बाद में लाभ मिले। बुरे कर्म वे हैं, जो हमारे कर्तव्य कर्म नहीं हैं और दूसरे को या स्वयं को हानि पहुँचाने के लिये किये जाते हैं। अब यदि हम कर्तव्य कर्म तो करें, पर पुण्य या पाप पाने के लिये नहीं, क्योंकि वैसा करना हमारा कर्तव्य है, इसलिये ही करें, तो हमारे वे कर्म अकर्म कहलायेंगे।
ऐसे निष्काम कर्म जिनमें फल की कामना या तो होती नहीं है, या उसको भगवान् को समर्पित कर दें, तो वे प्रतिक्रिया नहीं देंगे।
What is meant by bondage arising out of Karma?
As long as we perform actions, we keep earning the good or bad fruits of those actions and are caught in a seemingly endless cycle of birth and death.
When actions are performed without any desire for reward, or if all good actions are consecrated to Krishna, there will be no consequences/fruits of such actions. The bondage of Karma will be broken by Akarma (Non-action).