Bhagavad Gita 2.69: Verse 69
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥2.69॥
भावार्थ - Gist
सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानन्द की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिस नाशवान सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं, परमात्मा के तत्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि के समान है॥2.69॥
That, which is night to all beings, an emancipated person keeps awake. And that (the everchanging worldly happiness), in which all beings keep awake, is night, to the enlightened seer.

व्याख्या - Explanation
1. सांसारिक मनुष्य रात दिन भोग और संग्रह में ही लगे रहते है। वे सांसारिक कार्यो में बड़े सावधान और निपुण होते हैं, तरह तरह के कला-कौषल सीखते हैं, आविष्कार करते हैं, लौकिक वस्तुओं की प्राप्ति में ही अपनी उन्नति मानते हैं, सुख भोगने के लिये देवताओं की पूजा करते हैं। परन्तु सच्चे साधक, तत्त्वज्ञ महापुरुषों की दृष्टि में वह बिल्कुल रात के समान है।
2. सांसारिक मनुष्य सांसारिक पदार्थों का भोग-संग्रह ही जानता है, जबकि साधक उन पदार्थों का त्याग भी जानता है। रुपयों का संग्रह करने वाला रुपयों का त्याग नहीं जानता, किन्तु रुपयों का त्याग करने वाला रुपयों का संग्रह भी जानता है और रुपयों का त्याग भी जानता है। अतः साधक को ही संसार की पूरी जानकारी हो सकती है, संसारी मनुष्य को तो आधी ही हो सकती है। और सांसारिक मनुष्य को परमात्मा/भगवान् की जानकारी तो होती ही नहीं, फिर भला वह संसार या परमेष्वर के विषय में सही निर्णय कैसे ले सकता है। तभी तो भगवान् कहते हैं-