Bhagavad Gita 3.19: Verse 19
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।3.19।।
भावार्थ - Gist
इसलिए तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्यकर्म को भलीभाँति करता रह क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है॥3.19॥
Therefore, remaining unattached at all times perform your duties well; because by working without attachment man attains the Supreme.
व्याख्या - Explanation
जब जीव मनुष्य योनि में जन्म लेता है तब उसको शरीर, धन, जमीन, मकान आदि सब सामग्री मिलती है और जब यहाँ से जाता है, तब सब सामग्री यहीं छूट जाती है। यह इसी प्रकार है- जैसे मनुष्य जब किसी दफ्तर में काम करने के लिये जाता है, तो उसे कुर्सी, मेज, कागज आदि सब सामग्री काम के लिये मिलती है, घर ले जाने के लिये नहीं। तत्परता से काम के बदले में उसे वेतन भी मिलता है। ऐसे ही जो मनुष्य सब काम संसार के लिये करता है, उसे वेतन के रूप में भगवान् की प्राप्ति होती है।
आसक्ति वाला मनुष्य अपने ही हित में काम करता है, जबकि आसक्ति रहित मनुष्य प्राणिमात्र के हित में ही काम करता है। उसके सभी काम निष्काम भाव से होते हैं।