Bhagavad Gita 5.14: Verse 14
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः ।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ।।5.14।।
भावार्थ - Gist
परमेश्वर मनुष्यों के न तो कर्तापन की, न कर्मों की और न कर्मफल के संयोग की रचना करते हैं, किन्तु स्वभाव ही बर्त रहा है॥5.14॥
God creates not the attitude of doership towards activities performed by men, he creates not even the activities or the incidence of fruits. All this is done by material nature.
व्याख्या - Explanation
1) किसी भी कर्म के कर्तापन का सम्बन्ध भगवान् का बनाया हुआ नहीं है। मनुष्य स्वयं ही प्रकृति से तादात्म्य करके कर्मों के कर्तापन की रचना करता है। अतः जीव इसका त्याग कर सकता है।
(2) भगवान् ऐसा विधान भी नहीं करते कि अमुक जीव को अमुक शुभ अथवा अशुभ कर्म करना पड़ेगा। यदि ऐसा विधान भगवान् कर देते, तो विधि-निषेध वाले शास्त्र, गुरु, शिक्षा आदि सब व्यर्थ हो जाते और कमर्®ंं का फल भी जीव को भोगना नहीं बनता। मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है।