Bhagavad Gita 8.5: Verse 5
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः।।8.5।।
भावार्थ - Gist
जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है॥8.5॥
He, who while departing from the body thinks of (remembers) Me alone even in the moment of death, attains Me, of this there is no doubt.
व्याख्या - Explanation
1) इस मनुष्य जीवन में भजन-साधन करने का अवसर प्राप्त होता है, पर उसे तो गवाँ दिया। अतः अन्तकाल में भी वह यदि मेरे को याद कर ले, तो उसे मेरी प्राप्ति हो जायेगी- ऐसा कृष्ण कहते हैं।
2) जिन्होंने कृष्ण को जिस भी रूप में पूजा है, अन्त समय में उन्हें भगवान् के उसी रूप का स्मरण होने से मनुष्य उन्हें ही प्राप्त होता है। किन्तु जिन्होंने कृष्ण की कभी पूजा नहीं की, उन्हें भी अन्त समय में किसी कारणवश कृष्ण का स्मरण हो जाये, तो वे भी उसी भगवद्भाव को प्राप्त होते हैं। उसकी भी अन्य उपासकों की तरह ही गति होती है।
3) इसलिये रोग से ग्रस्त कोई मरणासन्न व्यक्ति हो, तो उसके इष्ट के चित्र या मूर्ति को उसे दिखाना चाहिये। जिस भी भगवान् में उसकी श्रद्धा हो, उसी भगवन्नाम का उसे श्रवण कराना चाहिये। कृष्ण की महिमा और भागवत् कथा सुनानी चाहिये। गीता के श्लोक सुनाना चाहिये। भगवत् सम्बन्धी वायुमण्डल रहने से यमदूत वहाँ नहीं आ सकते। मृत्यु के समय अजामिल के द्वारा ‘नारायण’ नाम (उसके पुत्र का नाम) निकल आने से वहाँ भगवान् के पार्षद आ गये और यमदूतों को भाग कर यमराज के पास जाना पड़ा। यमराज ने यमदूतों को समझाया कि ‘जहाँ भगवन्नाम का जप, कीर्तन और कथा आदि होते हों, वहाँ तुम लोग कभी मत जाना।’
4) यह तो कृष्ण की बड़ी ही विशेष कृपा है कि उन्होंने हर प्रकार के जीवन बिताने वाले को एक अवसर दे दिया है कि यदि वह अन्तकाल में भी कृष्ण का स्मरण कर ले, तो वह जीवन का लक्ष्य तुरन्त प्राप्त कर लेगा। मानो कृष्ण उससे उस समय कह रहे हों- ‘भैया! अब जाते-जाते ही तू मेरे को याद कर ले, जिससे तेरी और मेरी दोनों की इज्जत रह जाये और मेरा तुझे मनुष्य जन्म देना सफल हो जाये’।
5) यहाँ शंका होती है कि जिस व्यक्ति ने उम्र भर तो भजन, स्मरण नहीं किया, सर्वथा भगवान् से विमुख रहा, उसे अन्तकाल में कृष्ण का स्मरण कैसे होगा और उसका कल्याण कैसे होगा ?
यह बात बिल्कुल सच है कि ऐसे व्यक्ति द्वारा अन्त समय में कृष्ण को याद करना बेहद मुश्किल है। वास्तव में तो जो कभी-कभी कृष्ण को याद कर लेते हैं, उनकी पूजा कर लेते हैं, भागवत् कथा भी सुन लेते हैं, पर उन्होंने यदि संसार की आसक्ति नहीं छोड़ी है, तो अन्त समय में वे भी प्रकृति के गुणों के संग ही शरीर को छोड़ते हैं। कृष्ण का अन्त समय में स्मरण भागवतम् (2.1.6) में परम सिद्धि कहा गया है। फिर उनके बारे में क्या कहा जाये, जिन्होंने कृष्ण को कभी याद ही नहीं किया ?
किन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में ऐसा भी सम्भव है, तभी तो कृष्ण इस श्लोक में ऐसा कह रहे हैं । यदि कृष्ण की उस पर विशेष कृपा हो जाये, या किसी कृष्ण के शुद्ध भक्त के दर्शन हो जायँ, तो अन्त समय में कृष्ण का स्मरण हो सकता है। अन्तकाल में कोई भयंकर स्थिति पैदा होने से मनुष्य भयभीत होकर कृष्ण को याद कर सकता है। भगवत् सम्बन्धी वायुमण्डल भी अचानक उसे कृष्ण का स्मरण करा सकता है। किन्तु ऐसा होना बहुत कठिन है, तभी तो कृष्ण 8.7 में अर्जुन को कहते हैं- ‘तू सब समय मेरा ही स्मरण कर।
It is an irrefutable truth that it is very difficult for such a person to remember Krishna at the time of his death. In fact even those who consistently remember Him, worship Him, listen to His pastimes but have not overcome worldly desires do not attain Krishna but leave the body along with modes of nature only. What then is to be said for those who have never remembered Krishna in their whole lifetime? Remembering Krishna in the end has been termed as the supreme perfection in Shrimadbhagvatam (2.1.6)
But in certain special circumstances it is possible for a man, having never remembered Krishna earlier, to remember Him in the end. It could be due to Krishna’s special grace or by beholding a pure devotee. If a really terrifying situation arises in the end, out of terror he may remember Krishna. A spiritual atmosphere may also cause him to remember God in the end. However it is indeed very difficult for such a person who has not remembered Krishna in his lifetime to remember Him while breathing his last and that is why Krishna asks Arjun in 8.7 to remember Him at all times.