Bhagavad Gita 10.41: Verse 41
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥10.41॥
भावार्थ - Gist
जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात् ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस-उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जान॥10.41॥
Know that whatever creature or object is full of glory, beautiful beyond imagination or incredibly powerful, it has taken form from but a spark of My splendour.
व्याख्या - Explanation
1) कृष्ण कहते हैं- ‘संसार में किसी भी व्यक्ति, वस्तु, घटना, परिस्थिति, भाव आदि में जो कुछ ऐश्वर्य, सौंदर्य, बलवत्ता, विलक्षणता आदि दीखे, उन सबको मेरे तेज के एक अंश से उत्पन्न हुआ जानो। मेरे बिना कहीं भी, कुछ भी विलक्षणता नहीं है।’
2) संसार की हर वस्तु, व्यक्ति आदि में महत्ता, सुन्दरता आदि उस वस्तु की नहीं है, क्योंकि यदि वह उसकी होती, तो हर समय रहती और सबको दिखती। फिर किसकी है ? निश्चित ही भगवान् की है।
3) यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति में जो कुछ विशेषता है, वह कृष्ण की है, तथापि जिनसे हमें लाभ हुआ है, उनके हम कृतज्ञ जरूर बनें, उनकी सेवा करें। परन्तु उनकी व्यक्तिगत विशेषता मानकर उनमें फँस न जायें, यह सावधानी रखें।
4) इस अध्याय में कही गयी विभूतियों के अलावा भी साधक को जिस-जिसमें आकर्षण दीखता है, वहाँ-वहाँ कृष्ण को ही देखना चाहिये अर्थात् वह विशेषता भगवान् की ही है- ऐसा दृढ़ता से धारण कर लेना चाहिये। भगवद् बुद्धि की दृढ़ता से संसार लुप्त हो जायेगा। सार बात यह है कि साधक को किसी तरह भी अन्त में वासुदेवः सर्वम्् में ही पहुँचना है।