Bhagavad Gita 11.7: Verse 7
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि।।11.7।।
भावार्थ - Gist
हे अर्जुन! अब इस मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत को देख तथा और भी जो कुछ देखना चाहता हो सो देख॥7॥ (गुडाकेश- निद्रा को जीतने वाला होने से अर्जुन का नाम ‘गुडाकेश’ हुआ था)
O Arjun, conqueror of sleep! Whatever you wish to see behold at once in this body of Mine; see contained herein the entire animate and inanimate creation and countless universes, and whatever else you desire to see, of the past, present or future.
व्याख्या - Explanation
(1) अगर कृष्ण अपनी तरफ से ‘मेरे किसी एक अंश में सम्पूर्ण जगत् स्थित है’- यह बात न कहते, तो अर्जुन विश्वरूप देखने की इच्छा नहीं करते। फिर कृष्ण उन्हें वह रूप दिखाते कैसे ? इससे सिद्ध होता है कि कृष्ण कृपापूर्वक अपनी ओर से ही अर्जुन को वह विश्वरूप दिखाना चाहते थे।
(2) आरम्भ में भी 1.21 में जब अर्जुन कृष्ण से अपने रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा करने की प्रार्थना करते हैं तो कृष्ण ने रथ को भीष्म और गुरु द्रोणाचार्य के सामने खड़ा किया। इसका यही आशय मालूम होता है कि कृष्ण गीता का ज्ञान देना चाहते थे। अतः कृष्ण ने गीता को अपनी तरफ से ही कृपा करके प्रकट किया है।