Bhagavad Gita 16.19: Verse 19
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्।
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।16.19।।
भावार्थ - Gist
उन द्वेष करने वाले पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ ॥16.19॥
I repeatedly precipitate those hate-filled, cruel-natured, impure and lowest among men into demoniac births and into no-other.
व्याख्या - Explanation
1) अब कृष्ण आसुरी सम्पदा के विषय का इन दो श्लोकों में उपसंहार करते हुए कहते हैं कि ऐसे मनुष्य बिना कारण ही सबसे वैर रखते हैं। उनके कर्म बड़े क्रूर होते हैं, उनके द्वारा दूसरों की हिंसा आदि हुआ करती है। ऐसे मनुष्यों को कृष्ण उनके स्वभाव के अनुसार आसुरी योनि देते हैं।
(2) यद्यपि वे कृष्ण से द्वेष करते हैं, तथापि कृष्ण का उन क्रूर, निर्दयी मनुष्यों से भी अपनापन रहता है। साधारण मनुष्य जिससे अपनापन करते हैं, उसे लौकिक सुख में फँसा देते हैं, परन्तु कृष्ण जिससे अपनापन करते हैं, उसको शुद्ध बनाने के लिये प्रतिकूल परिस्थिति भेजते हैं, जिससे वे सदा के लिये सुखी हो जायँ, उनका उद्धार हो जाये, अतः उनके पाप दूर करने के लिये आसुरी योनि में भेजते हैं।