Bhagavad Gita 18.65: Verse 65
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।।
भावार्थ - Gist
हे अर्जुन! तू मुझमें मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो और मुझको प्रणाम कर। ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा, यह मैं तुझसे सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि तू मेरा अत्यंत प्रिय है ৷৷18.65॥
Fix your mind on Me; become My devotee; worship Me with body, heart and intellect; surrender yourself to Me in the attitude of loving prostration (sashtang pranama). So you shall surely attain Me, Myself. This I verily promise to you, because you are dear to Me.

व्याख्या - Explanation
1) साधक को सबसे पहले ‘मैं कृष्ण का हूँ’ इस प्रकार अपनी अहंता बदल लेनी चाहिये। फिर साधन सुगमता से स्वाभाविक ही होने लगता है। कृष्ण को अपना मानने से वे स्वाभाविक ही प्रिय लगते हैं। फिर मन से स्वतः उनके नाम, प्रभाव, लीला आदि का चिन्तन होता है।
2) ‘मुझे नमस्कार कर’- अर्थात् साधक कृष्ण को साष्टांग प्रणाम करके उन्हें समर्पित हो जाये और हर प्रकार की परिस्थिति में कृष्ण का मंगलमय विधान मानकर प्रसन्न रहे। जो कुछ होता है, वह कृष्ण की कृपा है, कारण कि कृष्ण प्राणिमात्र के परम सुहृद हैं (5.29)।
3) ‘मैं सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ, तू मेरा प्यारा है, तू मुझे ही प्राप्त हो जायेगा’- का तात्पर्य है कि मेरा भक्त होने से, मेरे में मनवाला होने से, मेरा पूजन करने वाला होने से, और मुझे नमस्कार करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा।