Bhagavad Gita 14.9: Verse 9
सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत।।14.9।।
भावार्थ - Gist
हे अर्जुन! सतोगुण मनुष्य को सुख में बाँधता है, रजोगुण मनुष्य को सकाम कर्म में बाँधता है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढँक कर प्रमाद में बाँधता है।।14.9।।
O Arjun! Born of the dynasty of Bharat; sattvaguna captures a striver by inducing in him an attachment towards inward happiness; rajoguna gains victory over the creature by inclining and attaching him towards actions (karma); but tamoguna binds by covering his intellect with the darkness of ignorance and filling him with indolence and perversity.
व्याख्या - Explanation
1) सतोगुण साधक को सुख में लगाकर विजय पाता है। तात्पर्य यह है कि सतोगुण आने पर साधक की सुख में आसक्ति हो जाती है और वह आसक्ति साधक को बाँध देती है। फलस्वरूप साधक गुणों से ऊँचा उठकर गुणातीत नहीं हो सकता।
2) मनुष्य को कर्म करना अच्छा लगता है। जैसे छोटा बच्चा लेटे-लेटे हाथ पैर चलाता है, तो उसे अच्छा लगता है। यदि उसका हाथ-पैर चलाना बंद कर दिया जाय, तो वह रोने लगता है, ऐसे ही मनुष्य जब कोई क्रिया कर रहा होता है, तो उसे अच्छा लगता है और उस क्रिया को यदि बीच में छुड़ा दें, तो उसे बुरा लगता है। यही क्रिया के प्रति आसक्ति है, जिससे रजोगुण मनुष्य पर विजय पाता है।
3) कर्मों के फल में तेरा अधिकार नहीं है (2.47) – आदि से फल में आसक्ति न रखने की तरफ तो ख्याल जाता है, पर कर्मों में आसक्ति न रखने की तरफ ख्याल नहीं जाता। तेरी कर्म न करने में आसक्ति न हो (2.47), या जो योगारूढ़ होना चाहता है, निष्काम भाव से कर्म करना उसमें कारण है (6.3) – आदि वचनों से विचार यही होता है कि कर्मों को तो करना ही चाहिये। फिर करते-करते उनमें प्रियता हो जाती है, उनमें आसक्ति पैदा करके रजोगुण बाँध देता है।
साधक की कर्तव्य कर्म में तत्परता तो होनी चाहिये, पर कर्मों में आसक्ति, प्रियता, आग्रह कभी नहीं होना चाहिये।
4) तमोगुण विवेक को ढक देता है, जिससे उसे सत्-असत्, कर्तव्य-अकर्तव्य का ख्याल ही नहीं रहता। ज्ञान को ढक कर तमोगुण मनुष्य को प्रमाद में लगाता है, जिससे मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर पाता है- यही तमोगुण का विजयी होना है।