कृष्ण अब अपने निवास की संक्षिप्त प्रकृति का वर्णन करते हैं और कहते हैं कि सभी जीवित संस्थाएँ मेरे टुकड़े हैं। शरीर की मृत्यु पर इन प्राणियों में निहित आत्मा केवल स्थूल शरीर को पीछे छोड़ती है लेकिन सूक्ष्म और कारण शरीर को साथ ले जाती है।
कृष्ण अब अपने बारे में बताते हुए कहते हैं कि सभी के दिल में रहते हुए वह सभी प्राणियों की देखभाल करते हैं। अकेले से ही मनुष्य को उसकी स्मृति और उसकी सभी शंकाओं का समाधान मिल जाता है। वह अकेला जानने लायक है और वह वेदों को सबसे अच्छी तरह जानता है।
वह अध्याय को यह कहते हुए समाप्त करता है कि वह वेदों और दुनिया में सुपरसोल के रूप में जाना जाता है। जो लोग उन्हें ऐसे जानते हैं वे हर समय उनकी महिमा गाते हैं।
This chapter reveals the actual nature of the world which is very different from what we see. Only after detaching from this world should we try to seek the God.
Krishna now describes in brief nature of His abode and says that all the living entities are My fragments. The soul contained in these creatures on the death of the body leaves behind only the gross body but carries alongwith the subtle and the causal body.
Krishna now describing about Himself says that living in the heart of everyone He takes care of all the creatures. From Him alone man gets his memory and the solutions to all his doubts. He alone is worth knowing and He knows vedas best.
He ends the chapter by saying that He is known as Supersoul in vedas and the world. Those who know Him as such sing His glory all the time.
Bhagavad Gita 15.1 : Verse 1:View
श्री भगवानुवाच
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।
Bhagavad Gita 15.2 : Verse 2:View
अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।
अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।।15.2।।
Bhagavad Gita 15.3 : Verse 3:View
न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।
अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।15.3।।
Bhagavad Gita 15.4 : Verse 4:View
ततः पदं तत्परिमार्गितव्य यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।
तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी।।15.4।।
Bhagavad Gita 15.5 : Verse 5:View
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।
Bhagavad Gita 15.6 : Verse 6:View
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।15.6।।
Bhagavad Gita 15.7 : Verse 7:View
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति।।15.7।।
Bhagavad Gita 15.8 : Verse 8:View
शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्।।15.8।।
Bhagavad Gita 15.9 : Verse 9:View
श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते।।15.9।।
Bhagavad Gita 15.10 : Verse 10:View
उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम्।
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः।।15.10।।
Bhagavad Gita 15.11 : Verse 11:View
यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम्।
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः।।15.11।।
Bhagavad Gita 15.12 : Verse 12:View
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्।।15.12।।
Bhagavad Gita 15.13 : Verse 13:View
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।15.13।।
Bhagavad Gita 15.14 : Verse 14:View
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।15.14।।
Bhagavad Gita 15.15 : Verse 15:View
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टोमत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ৷৷15.15৷৷
Bhagavad Gita 15.16 : Verse 16:View
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते।।15.16।।
Bhagavad Gita 15.17 : Verse 17:View
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः।।15.17।।
Bhagavad Gita 15.18 : Verse 18:View
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः।।15.18।।
Bhagavad Gita 15.19 : Verse 19:View
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।।15.19।।
Bhagavad Gita 15.20 : Verse 20:View
इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ ।
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ৷৷15.20৷৷